लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15535
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

8

संकोच अनावश्यक


इस प्रथा के प्रचलन में एक बड़ी कठिनाई यह है कि हमारे देश में विवाह को, दाम्पत्य जीवन को एक झिझक, संकोच एवं लज्जा का विषय माना जाने लगा है। उसे लोग छिपाते हैं। दूसरों को देखकर स्त्रियाँ अपने पतियों से घूँघट काढ़ लेती हैं और पति अपनी पत्नी की तरफ से आँखें नीची कर लेता है। विवाह के अवसर पर वधू बड़े संकोच के साथ डरती-झिझकती कदम उठाकर आती है। कहीं-कहीं तो उसे गोदी में उठाकर ले जाते है। यह अनावश्यक संकोचशीलता निरर्थक है। भाई-भाइयों की तरह पति-पत्नी भी दो साथी हैं। विवाह न तो चोरी है न पाप। दो व्यक्तियों का धर्मपूर्वक द्वैत को अद्वैत में परिणत करने का व्रत-बंध ही विवाह अथवा दाम्पत्य संबंध है। अवश्य ही अश्लील चेष्टायें अथवा भाव-भंगिमायें खुले रूप से निषिद्ध मानी जानी चाहिए पर साथ-साथ बैठने-उठने, बात करने की मानवोचित रीति-नीति में अनावश्यक संकोच बरता जाय इसमें न तो कोई समझदारी है न कोई तुक। इस बेतुकी को यदि हटा दिया जाय तो इससे मर्यादा का तनिक भी उल्लंघन नहीं होता। जब अनेक अवसरों पर पति-पत्नी पास-पास बैठ सकते हैं कोई हवन आदि धर्म कृत्य कर सकते हैं साथ-साथ तीर्थयात्रा आदि कर सकते हैं तो विवाह दिवसोत्सव पर किये जाने वाले साधारण से हवन में किसी को क्यों संकोच होना चाहिए? गायत्री हवन के साथ-साथ चार-पाँच छोटे-छोटे अन्य विधि-विधान जुड़े हुए हैं और प्रवचनों का विषय दाम्पत्य जीवन होता है इसके अतिक्ति और कुछ भी बात तो ऐसी नहीं है जिसके लिए झिझक एवं संकोच किया जाय। विवाह की चर्चा करने पर जैसे वर-वधू सकुचाते है वैसी ही

कुछ झिझक विवाह दिवसोत्सव के अवसर पर दिखाई देती है। इसमें औचित्य तनिक भी नहीं, विचारशील लोगों के लिए यह अकारण की संकोचशोलता छोड़ने में कुछ अधिक कठिनाई न होनी चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. विवाह प्रगति में सहायक
  2. नये समाज का नया निर्माण
  3. विकृतियों का समाधान
  4. क्षोभ को उल्लास में बदलें
  5. विवाह संस्कार की महत्ता
  6. मंगल पर्व की जयन्ती
  7. परम्परा प्रचलन
  8. संकोच अनावश्यक
  9. संगठित प्रयास की आवश्यकता
  10. पाँच विशेष कृत्य
  11. ग्रन्थि बन्धन
  12. पाणिग्रहण
  13. सप्तपदी
  14. सुमंगली
  15. व्रत धारण की आवश्यकता
  16. यह तथ्य ध्यान में रखें
  17. नया उल्लास, नया आरम्भ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book